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शेष / अशोक वाजपेयी

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सब-कुछ बीत जाने के बाद
बचा रहेगा प्रेम
केलि के बाद शैया में पड़ गई सलवटों-सा,
मृत्यु के बाद द्रव्य-स्मरण-सा,
अश्वारोहियों से रौंदे जाने के बाद
हरियाली ओढ़े दुबकी पड़ी धरती-सा,
गरमियों में सूख गए झरने की चट्टानों के बीच
जड़ों में धँसी नमी-सा
बचा रहेगा
अंत में भी
प्रेम!

(1990)