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08:05, 17 फ़रवरी 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=येव्गेनी येव्तुशेंको
|संग्रह=धूप खिली थी और रिमझिम वर्षा / येव्गेनी येव्तुशेंको
}}
[[Category:रूसी भाषा]]
<Poem>
मैं
तुमसे क्या कहूँ
ऎ रूस !
तेरे मैदान भी
उतने ही सुन्दर हैं
जितने सुन्दर वन हैं तेरे
उनकी आवाज़ में
अपनी आवाज़ मिलाने दे मुझे
मैं क्या
चुप रह जाऊँ
ऎ रूस !
बहुत ज़्यादा
सलीबें हैं
तेरे कब्रिस्तानों में
और ऎसी भी कब्रें बहुत
जिन पर नहीं सलीब
मैं कैसे
मदद करूँ तेरी
ऎ रूस!
वहाँ
कवि क्या मदद करेगा
जहाँ सत्ता
प्राय: कवियों को
देश निकाला दे देती है
रूस- मेरी देवि की छवि है
तेरी रोटी- मेरी हवि है
तेरा दुख- मेरा दुर्भाग्य
तेरा भाग्य- मेरा भी भाग्य
</poem>