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सुबह की धूप / सुधा ओम ढींगरा

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|रचनाकार=सुधा ओम ढींगरा
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चाँदी रंग में रंगी हुई यह सुबह की धूप;
जीवन में उमंग जगाए यह सुबह की धूप!
गर्मी में लागे इसका ऐसा रूप निराला;
पसीने से सराबोर करे यह सुबह कि धूप!
साँस ना आये जी घबराए हर पल जाने कैसा;
फूल पत्तियाँ सब कुम्लाए यह सुबह की धूप!
सब को यह परेशान करे क्या पशु क्या पक्षी;
पर फसलों को महकाए यह सुबह की धूप!
गर्मी में सब दूर भागते सर्दी में पास बुलाते;
क्या-क्या रूप दिखाए यह सुबह की धूप!
इसके आँचल में जो बैठे माँ सा प्यार पाए;
ठिठुरन सब की दूर भगाए यह सुबह की धूप!
कभी गर्मी ,कभी सर्दी, पतझड़ औ' मधुमास;
क्या-क्या रंग बदले है यह सुबह की धूप!
न कोई इसका दुश्मन जग में न कोई दोस्त;
सब पर अपना प्यार लुटाए यह सुबह की धूप!



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