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{{KKRachna
|रचनाकार=ज़ाक प्रेवेर
}}


<poem>
मैंने उसे देखा जो दूसरों की टोपी पर बैठा था
पीला पड़ा था वह
काँप रहा था
किसी चीज़ के...किसी भी चीज़ के...इंतज़ार में था वह
युद्ध-दुनिया का अंत-
तकरीबन असंभव था उसके लिए बोल पाना
या इशारा कर पाना
और दूसरा जो खोज रहा था अपनी टोपी
वह और भी ज़्यादा पीला था
वह भी काँप रहा था
दोहराता था निरंतर
मेरी टोपी-मेरी टोपी
वह रोना चाहता था-
मैंने उसे भी देखा जो पढ़ रहा था अखबार
मैंने उसे भी देखा जो सलामी दे रहा था झंडे को
मैंने उसे भी देखा जो काले कपड़े पहने था
एक घड़ी थी उसके पास
घड़ी की चेन थी
बटुआ था और एक बिल्ला था
नाक खुजलाने का औजार भी था उसके पास
मैंने उसे देखा जो अपने बच्चे को हाथ से घसीट रहा था-
बच्चा रो रहा था-
मैंने उसे देखा जो कुत्ता लिए हुए था
मैंने उसे देखा जो गुप्ती लिए हुए था
मैंने उसे देखा जो रो रहा था
मैंने उसे देखा जो गिरजे में जा रहा था
मैंने उसे भी देखा जो लौट रहा था वहाँ से।


</poem>

'''मूल फ़्रांसिसी से अनुवाद : हेमन्त जोशी
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