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कहां पात्रता थी तेरी यह तो उसकी ही महाकृपा
टेर रहा अप्रतिमकृपालुनि मुरली तेरा मुरलीधर।।5।।
 
नाम रूप पद बोध विसर्जित कर सच्चामय बन मधुकर
मनोराज्य में ही रम सुखमय झर झर झर झरता निर्झर
सच्चे प्रियतम के कर में रख पंकिल प्राणों की वीणा
टेर रहा अमन्दगुंजरिता मुरली तेरा मुरलीधर।।6।।
 
यत्किंचित जो भी तेरा है उसका ही कर दे मधुकर
करता रहे तुम्हें नित सिंचित प्रभुपद कंज विमल निर्झर
मलिन मोह आवरण भग्न कर करले प्रेम भरित अंतर
टेर रहा हे भुवनमोहिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।7।।
 
मनोराज्य में देख पुश्पिता उसकी तरुलतिका मधुकर
उसकी मनहर भावभरी भ्रमरी तितली सरणी निर्झर
स्नेह सुरभि बांटता सलोना मनभावन बंशीवाला
टेर रहा है अमृतसंश्रया मुरली तेरा मुरलीधर।।8।।
 
तुम्हें पुकार मधुर वाणी में बार बार मोहन मधुकर
कर्णपुटों में ढाल रहा है वह आनन्दामृत निर्झर
कहां गया संबोधनकर्ता विकल प्राण कर अन्वेषण
टेर रहा है आत्मविग्रहा मुरली तेरा मुरलीधर।।9।।
 
रंग रंग की राग रागिनी छेड बांसुरी में मधुकर
बूंद बूंद में उतर प्रीति का सिंधु बन गया रस निर्झर
तुम्हें बहुत चाहता तुम्हारा वह प्यारा सच्चा प्रियतम
टेर रहा सरसारसवंती मुरली तेरा मुरलीधर।।10।।
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