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श्वाँस श्वाँस गहन तिमिर में रमा वही सब हलन चलन तेरी दिशादर्शिका हो ज्यों दीपशिखा मधुकर यश अपयश उत्थान पतन सब उस सच्चे रस का मरु अवनी की प्राण पिपासा हर लें ज्यों नीरद निर्झर वही प्रेरणा क्षमता ममता प्रीति पुलक उल्लास वहीतथा मृतक काया में पंकिल भर नव श्वाँसों का स्पंदनटेर रहा है व्यक्ताव्यक्ता नित्य नूतना मुरली तेरा मुरलीधर।।31।।मुरलीधर।।16।।
कर्णफूल दृग द्युति वह तेरी सिंदूरी रेखा लघु जलकणिका को बाहों के पलने में ले ले मधुकर वही हृदय माला प्राणों की वीणा की झंकृति हलराता दुलराता रहता ज्यों अविराम सिंधु निर्झर वही सत्य का सत्य तुम्हारे जीवन का भी वह जीवन बिन्दु बिन्दु में प्रतिपल स्पंदित तथा तुम्हारा रत्नाकर टेर रहा है परमानन्दा स्वजनादरिणी मुरली तेरा मुरलीधर ।। 32।। मुरलीधर।।17।।
रह लटपट उसको पलकों की ओट न होने दे चिन्तित सोच विगत वासर क्यों व्यथित सोच भावी मधुकर मिलन गीत गाता लहराता बहा जा रहा रस प्रवहित निशि वासर अनुप्राणित नित्य नवल जीवन निर्झर तुम उसकी हो प्राणप्रिया परमातिपरम सौभाग्य यही पल पल जीवन रसास्वाद का तुम्हें भेंज कर आमंत्रण टेर रहा है हृदयोल्लासिनि प्रियागुणाढ्या मुरली तेरा मुरलीधर।।33।।मुरलीधर।।18।।
मृदुल मृणाल भाव अंगुलि से छू मन प्राण बोध गत स्मृतियों को जोड जोड क्यों दौड रहा मोहित मधुकर रोम रोम में लहरा देता वह अचिंत्य लीला सुधा नीरनिधि छोड बावरे मरता चाट गरल निर्झर मधुराधर स्वर सुना विहॅंसता वह प्रसन्न मुख वनमालीफंस किस आशा अभिलाषा में व्यर्थ काटता दिन पंकिल टेर रहा है सर्वमंगला मधुरमाधवी मुरली तेरा मुरलीधर।।34।।मुरलीधर।।19।।
नारकीय योनियाँ अनेकों रौरव नर्क पीर मधुकरउसके संग संग ले सह ले सब उसका लीला निर्झर रहना कहीं बनाये रखना उसको आँखों का अंजनटेर रहा गूँथ प्राणमाला मतवाला आनेवाला है सर्वशिखरिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।35।। प्राणेश्वर के संग संग ही कुंज कुंज वन वन मधुकरडोल डोल हरि रंग घोल अनमोल बना ले मन निर्झर शेश सभी मूर्तियाँ त्याग सच्चे प्रियतम के पकड़ चरण टेर रहा है सर्वशोभना मुरली तेरा मुरलीधर।।36।। छवि सौन्दर्य सुहृदता सुख का सदन वही सच्चा मधुकर कर्म भोग दुख स्वयं झेल लो हों न व्यथित प्रियतम निर्झर तुम आनन्द विभोर करो नित प्रभु सुख सरि में अवगाहनटेर रहा है प्राणपोषिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।37।। ललित प्राणवल्लभ की कोमल गोद मोदप्रद है मधुकर प्रियतम की मृणाल बाँहें अति समीप आसीन तुम्हारे ही सुख सौभाग्य सेज निर्झर प्रेम अवनि वह पवन प्रेम जल प्रेम वह्नि गिरि नभ सागर टेर रहा है प्रेमाकारा मुरली तो तेरा मुरलीधर।।38।। डूब कृष्ण स्मृति रस में मानस मधुर कृष्णमय कर मधुकर बहने दे उर कृष्ण अवनि पर कल कल कृष्ण कृष्ण निर्झर सब उसका ही असन आभरण शयन जागरण हास रुदनटेर रहा है सर्वातिचेतना मुरली तेरा मुरलीधर।।39।। हृदय कुंज में परम प्रेममय निर्मित अम्बर मधुकर उसी परिधि में विहर तरंगित सर्वशिरोमणि रस निर्झर इस अम्बर से भी विशाल वह प्रेमाम्बर देने वाला बड़भागिनी तुम्हें कर देगा ललित अंक ले वनमालीटेर रहा है विश्ववंदिनी मनोहारिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।40।।मुरलीधर।।20।।
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