<poem>
सोच अरे बावरे कर्म से ही तो बना जगत सो कर नहीं बिता वासर दिन रात जागता रह मधुकर चल उसके संग रच एकाकी एक प्रीति पंकिल जो सोता वह खो देता है मरुथल में जीवन निर्झरप्राण कदंब छाँव में कोमल भाव सुमन की सेज बिछासर्वसमर्पित कर इस क्षण ही साहस कर मिट जा मिट जा टेर रहा सुखसृष्टिविधाना सर्वार्तिभंजिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।41।।मुरलीधर।।21।।
रख निश्शब्द स्नेह से उसके आनन पर आनन सोच रहा क्या देख देख कितना प्यारा मनहर मधुकर भर ले रिक्त हृदय की गागर उमड़ा सच्चा मात्र टकटकी बाँध देखते उमड़ पड़ेगा रस निर्झर प्राणों से प्राणों जीवन के प्रति रागरंग का पंकिल चलने दे संवाद सरसतुम्हें सुना संगीत ललित टेर रहा है संवादसर्जिनी मंजुमोहिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।42।।मुरलीधर।।22।।
सुमन सुमन प्रति कलिका कलिका मँडराता फिरता देख रहा जो उसे देखने का संयोग बना मधुकर क्षुधा पिपासा मिटी न युग से भटक रहा है तू दिशा शून्य चेतना खोज ले रासविहारी रस निर्झर तू मन का मन नहीं तुम्हारा खंड खंड में फंसा पर से निज पर ही निज दृग की फेर चपल चंचल पुतलीटेर रहा है क्लेशनाशिनी स्वात्मानुसंधिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।43।।मुरलीधर।।23।।
फेरा तेरा जन्म जन्म तेरे अधरों का मिटा नहीं लम्पट गुंजन वह गीत वही स्वर वह मधुकरअभीं और कितना भटकेगा इस निर्झर से उस उसे निहार निहाल बना ले पंकिल नयनों का निर्झर बहिर्मुखी गुंजन से तेरी भग्न हुई जीवन वीणा थक थक बैठ गया तू फिर भी भेंज रहा वह संदेशाटेर रहा है प्राणगुंजिनी शतावर्तिनी मुरली तेरा मुरलीधर।।44।।मुरलीधर।।24।।
किया न अवलोकन अंतर्मुख मौन शान्त मानस मधुकरशान्त चित्त अपने मन में ही विलीन हो पाता अहंकार निर्झर सुन विचार शून्यता बीच निज प्रियतम की पदचाप मधुर टेर रहा है शांतिसागरा मुरली तेरा मुरलीधर।।45।। जाग न जाने कब वह आकर खटका देगा पट प्रविष्ट नित कर ले उसका मन मधुकर सतत सजगता से बस उसके मन का ही निर्जल होता अहमिति का निर्झर मूढ़ विस्मरण में निद्रा में मिलन यामिनी रसमय झर झर झरने दे न बिता टेर रहा विस्मरणविनाशा मुरली तेरा मुरलीधर।।46।। क्या स्वाधीन कभीं रह सकता क्षुद्र भोग भोगी मधुकर क्षणभंगुर वासना बीच बहता न प्रीति का रस निर्झर भरा भरा भटकता बावरे रिक्त न निज जग प्रपंच को किया कभीं छीन तुम्हारा मन कर देगा बरसाना टेर रहा रिक्तान्तरालया मुरली तेरा मुरलीधर।।47।। बड़भागी हो सुन सच्चे का कितना प्यारा स्वर मधुकर जाते जहाँ वहीं बह जाता गुनगुन गीतों का निर्झर और मिले कुछ मिले न जग में बस अक्षय धन कृष्ण स्मरणटेर रहा प्रभुसम्पदालया मुरली तेरा मुरलीधर।।48।। अहोभाग्य तुमको ज्योतिर्मय करता है दिनमणि मधुकर नहलाता मनहर रजनी में उरनिकुंजिनी उसका राकापति निर्झर धन्य धन्य तुमको प्रियतम का दुलराता तारा मंडल टेर रहा है विश्वंभरिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।49।। सुमनों की मधु सुरभि धार में तुम्हें बुलाता वह मधुकर वासंती किसलय में तेरे लिये लहरता रस निर्झर कली कली प्रति गली गली में रहा पुकार गंधमादन टेर रहा है सर्वमूर्तिणी मुरली तेरा मुरलीधर।।50।।मुरलीधर।।25।।
</poem>