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20:18, 18 अप्रैल 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=ताकि सनद रहे
}}
<Poem>
गोल महल में
भारी बदबू,
सीलन औ' अवसाद;
धुप से
टूट गया संवाद .
कुर्सीजीवी कीट
बोझ से
धरती दबा रहे हैं;
मोटी एक किताब,
उसी के
पन्ने चबा रहे हैं;
दरवाज़े हैं बंद
झरोखों तक
मलबे की ढेरी;
दिवा रात्रि का आवर्तन है
चमगादड़ की फेरी;
इसको दफ़न करें मिटटी में
बन जाने दें -
खाद !
</poem>