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{{KKRachna
|रचनाकार=ऋषभ देव शर्मा
|संग्रह=तरकश / ऋषभ देव शर्मा
}}
<Poem>
हंस के हरेक जहर को पी जाय फकीरा
सच बोलता हुआ नहीं घबराय फकीरा

खिल जाय धूप गाँव में हो जाय सवेरा
जो रात के अंधेर में जग जाय फकीरा

आकाश का सुमन मिले यह सोच सूलियाँ
हर बार हर चुनाव में चढ़ जाय फकीरा

पदचाप लोकतंत्र की बस एक पल सुने
फिर पाँच साल तक तके मुँह बाय फकीरा

उसको न रक्तपात से तुम मेट सकोगे
सम्भव नहीं कि खौफ से मर जाय फकीरा

आजन्म तेज़ आंच में इतना तपा-गला
इस्पात की चट्टान में ढल जाय फकीरा

सबके नकाब नोंच दे बाज़ार में अभी
अपनी पे मेरे यार! जो आ जाय फकीरा </Poem>