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{{KKRachna
|रचनाकार=विनय प्रजापति 'नज़र'
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[[category: ग़ज़ल]]

<poem>

'''लेखन वर्ष: 2004

कैसे मिलूँ तुमसे जो न मिलना चाहो
चला चलूँ अगर साथ चलना चाहो

नहीं कहते हो मुझ से हर बार तुम
करूँ क्या’ जो तुम ख़ुद जलना चाहो

मैं मसख़रा ही सही तुम तो गुल हो
तुमको हँसा दूँ जो तुम खिलना चाहो

देख लो मेरी दीवानगी एक बार तुम
बिखेरो मुझे’ जो तुम संभलना चाहो

'''शब्दार्थ:
मसख़रा: clown, joker, मज़ाकिया
</poem>