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कैसे मिलूँ तुमसे जो न मिलना चाहो/ विनय प्रजापति 'नज़र'


लेखन वर्ष: 2004

कैसे मिलूँ तुम से जो न मिलना चाहो
चला चलूँ अगर साथ चलना चाहो

नहीं कह देते हो हर बार तुम मुझ से
मैं करता भी क्या, गर ख़ुद जलना चाहो

मैं इक मसख़रा<ref>मज़ाक करने वाला</ref> ही सही तुम तो गुल हो
तुम को हँसा दूँ अगर तुम खिलना चाहो

देखोगे मेरी दीवानगी की हद तुम
बिखेर दो मुझे गर तुम संभलना चाहो

शब्दार्थ
<references/>