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इन्तसाब / ब्रजेन्द्र 'सागर'
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08:23, 10 मई 2009
उन सबको
जो माज़ी<ref>भूतकाल</ref>में जी रहे
हाज़िर<ref>वर्तमान<
/
ref>कोफ़र्दा<ref>भविष्य<
/
ref>की
सौगात हैं
और
तुमको' भी
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</poem>
Shrddha
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