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बाम-ए-मीना से माहताब उतरे<br>
दस्त-ए-साक़ी में आफ़्ताब आफ़ताब आये<br><br>
हर रग-ए-ख़ूँ में फिर चराग़ाँ हो<br>
जल उठे बज़्म-ए-ग़ैर के दर-ओ-बाम<br>
जब भी हम ख़ानमाँख़राब ख़ानाख़राब आये<br><br>
इस तरह अपनी ख़मशी ख़ामोशी गूँजी<br>
गोया हर सिम्त से जवाब आये<br><br>
'फ़ैज़' थी राह सर बसर मंज़िल<br>
हम जहाँ पहुँचे कामयाब आये
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