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06:09, 21 मई 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अली सरदार जाफ़री
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नसीम तेरी क़बा
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नसीम तेरी क़बा, बूए-गुल है पैराहन
हया का रंग रिदाए-बहार१ उढा़ता है
तेरे बदन का चमन ऐसे जगमगाता है
कि जैसे सैले-सहत, जैसे नूर का दामन
सितारे डूबत हैं चाँद झिलमिलाता है
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१.बहार की चादर
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