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|रचनाकार=प्रेम नारायण ’पंकिल’ 'पंकिल'
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<poem>
 
देख शरद वासंती कितने हुए व्यतीत दिवस मधुकर
काल श्रृंखलाबद्ध अस्त हो जाता भास्वर रवि निर्झर
और न कुछ आँसू तो होंगे उनका ही ग्राहक सच्चा
टेर रहा है जगदालम्बा मुरली तेरा मुरलीधर।।145।।
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