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आओ हम तुम खेल खेलें
 जो मर्जी मर्ज़ी हो तुम वह बोलो जो मर्जी मर्ज़ी हो हम समझेंगे रोएंगे या गाएँगेगाएंगेया हंस हंस हँस हँस कर चुप जाएँगे  
तुम चाहो तो छू सकते हो
 तन को ..मन को ...जो मर्जी मर्ज़ी हो  
लेकिन कोई भी कुछ पूछे
 
समझो खेल ख़त्म हो आया
 
आओ खेलें ऐसा खेल
</poem>
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