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न हुई गर मेरे मरने से तसल्ली न सही / ग़ालिब
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18:32, 22 मई 2009
न सिताइश की तमन्ना न सिले की परवाह <br>
गर नहीं है मेरे
अशार
अश'आर
में माने न सही <br><br>
इशरत-ए-सोहबत-ए-ख़ुबाँ ही ग़नीमत समझो <br>
न हुई "ग़ालिब" अगर उम्र-ए-तबीई न सही <br><br>
हेमंत जोशी
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