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चाह भरो चंचल हमारो चित्त नौल बधू / पद्माकर
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,
05:18, 3 जून 2009
नाहीँ की कहनि ते सुनाहीं निकसत है ।
'''पद्माकर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल
मलहोत्रा
महरोत्रा
के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।
</Poem>
अनिल जनविजय
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