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चाह भरो चंचल हमारो चित्त नौल बधू / पद्माकर

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चाह भरो चंचल हमारो चित्त नौल बधू ,
तेरी चाल चँचल चितौनि मे बसत है ।
कहै पदमाकर सुचँचल चितौनिहु ते ,
औझकि उझकि झझकनि मे फसत है ।
औझकि उझकि झझकनि ते सुरझि वेस ,
बाहीँ की गहनि माँहि आइ बिलसत है ,
बाहीँ की गहनि ते सुनाही की कहनि आयो ,
नाहीँ की कहनि ते सुनाहीं निकसत है ।

पद्माकर का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल महरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।