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ज़िन्दगी ख़्वाबे-परीशाँ है कोई क्या जाने / जोश मलीहाबादी
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14:03, 11 जून 2009
सिर्फ़ एक रात की मेहमाँ है कोई क्या जाने
गुलशन-ए-
ज़िस्त
ज़ीस्त
के हर फूल की
रन्गीनी
रंगीनी
में दजला-ए- ख़ून-ए-रग-ए-जाँ है कोई क्या जाने
रंग-ओ-आहंग से बजती हुई यादों की बरात
रहरव-ए-जादा-ए-निसियाँ है कोई क्या जाने
हेमंत जोशी
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