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{{KKRachna
|रचनाकार=शिरीष कुमार मौर्य
|संग्रह=पृथ्वी पर एक जगह / शिरीष कुमार मौर्य
}}
आप <brpoem>आप उसे महसूस कर सकते हैं <br>बातों की <br>धूप - छाँव में <br>चेहरे पर वह कुछ अलग तरह की रेखाएं <br>बनाता है <br><br>
पहली निगाह में दिखाई भले न दे <br>पर धीरे - धीरे <br>समझ में आता है <br><br>
अचानक ही जन्म नहीं लेता वह<br> ह्रदय में पलता है <br>सरीसृपों के अंडे -सा <br><br>
फूटता है <br>वांछित गर्माहट और नमी पा कर <br><br>
मादा मगरमच्छ की तरह <br>हमेशा तैयार मिलते हैं <br>उसे <br>संभालकर मुंह में दबाये <br>जीवन के प्रवाह तक <br>
पहुंचाने वाले !
</poem>
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