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विद्वेष / शिरीष कुमार मौर्य
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आप
उसे महसूस कर सकते हैं
बातों की
धूप - छाँव में
चेहरे पर वह कुछ अलग तरह की रेखाएं
बनाता है
पहली निगाह में दिखाई भले न दे
पर धीरे - धीरे
समझ में आता है
अचानक ही जन्म नहीं लेता वह
ह्रदय में पलता है
सरीसृपों के अंडे -सा
फूटता है
वांछित गर्माहट और नमी पा कर
मादा मगरमच्छ की तरह
हमेशा तैयार मिलते हैं
उसे
संभालकर मुंह में दबाये
जीवन के प्रवाह तक
पहुंचाने वाले !