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अब अंतर में अवसाद नहीं
चापल्य नहीं उन्माद नहीं
सूना-सूना सा जीवन है
कुछ शोक नहीं आल्हाद नहीं
खो बैठा अपने हाथों ही
मैं अपना कोष अपर अपार प्रिये फिर कर लेने दो प्यार प्रिये .. </poem>
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