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18:20, 30 जुलाई 2009 <poem>
दौर ज़ुल्मों का अगर अंधकार देकर जाएगा
ढूँढकर शमां कोई फनकार देकर जाएगा
इस ज़िहादों की फिज़ा में वह किताबों की जगह
दुधमुहों के हाथ में तलवार देकर जाएगा
तूने सियासत की बिसातों का हुनर सीखा नहीं
जब यहाँ शातिर बड़ा सरकार देकर जाएगा
है मुकाबिल अब हमारे रक्तजीवी की नसल
मरण भी इनका तो बरखुरदार देकर जाएगा
हों झुलस कर माँगती बरसात प्यासी घाटियाँ
पर्वतों पर बर्फ का भंडार दे कर जाएगा
प्रेम की सारी दलीलों के मुकाबिल वह यहाँ
आज की ताज़ा हमें अख़बार देकर जाएगा
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