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08:50, 1 अगस्त 2009 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=सीमाब अकबराबादी
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<poem>
तू इन्तेज़ार में अपने यह मेरा हाल तो देख।
कि अपनी हद्देनज़र तक तड़प रहा हँ मैं॥
जलाले-मशरबेमन्सूर, ऐ मुआज़ल्ला।
किसी ने फिर न कहा आज तक ख़ुदा हूँ मैं॥
</poem>