Changes

नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुदर्शन वशिष्ठ |संग्रह=सिंदूरी साँझ और ख़ामोश ...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सुदर्शन वशिष्ठ
|संग्रह=सिंदूरी साँझ और ख़ामोश आदमी / सुदर्शन वशिष्ठ
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>जहाँ तहाँ रख दी जाती है
चिपका दी जाती है
विज्ञापन की औरत की तरह
कभी फ्रेम के भीतर
कभी बाहर
कभी दीवार पर
कभी द्वार पर।

वस्तु है
इसलिए नहीं कोई अपना अस्तित्व
टूटना है नापसन्द पर।
मजबूरी है
बेबसी है सजावट की वस्तु होना।

सजावट की वस्तु होना
दूसरों के लिये मरना भी है
कोई समझे
न समझे।
</poem>
Mover, Uploader
2,672
edits