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17:36, 24 अगस्त 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अरुणा राय
|संग्रह=
}}<poem>
मैं कहती हूं
कि देखो-छूओ-जानो
पर
मुझे बताओ मत
कि कैसा लगा
क्योंकि लगना
बीत चुका है
सोचो
कि कैसा लगेगा
कि यही संभव है
लंबे संवाद के बाद
चुप्पी का छोटा काल
कैसा लगेगा
यह जानने के लिए
कुछ दिन चुप रहो
चुप रहना भी
रहना ही है
अपने पूरेपन के साथ
इस चुप्पी को गहो
जो बीत गया
उसे मत कहो
मत कहो...