भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं कहती हूं / अरुणा राय

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं कहती हूं
कि देखो-छूओ-जानो
पर
मुझे बताओ मत
कि कैसा लगा
क्योंकि लगना
बीत चुका है
सोचो
कि कैसा लगेगा
कि यही संभव है
लंबे संवाद के बाद
चुप्पी का छोटा काल
कैसा लगेगा
यह जानने के लिए
कुछ दिन चुप रहो
चुप रहना भी
रहना ही है
अपने पूरेपन के साथ
इस चुप्पी को गहो
जो बीत गया
उसे मत कहो
मत कहो...