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14:52, 25 अगस्त 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=शमशेर बहादुर सिंह
|संग्रह=सुकून की तलाश / शमशेर बहादुर सिंह
}}
जहां में अब तो जितने रोज
अपना जीना होना है,
तुम्हारी चोटें होनी हैं-
हमारा सीना होना है।
वो जल्वे लोटते फिरते हैं
खाको-खूने-इंसॉं में :
'तुम्हारा तूर पर जाना
मगर नाबीना होना है।'
कदमरंजा है सूए-बाम
एक शोखी कयामत की:
मेरे खूने-हिना-परवर से
रंगो जीना होना है!
वो कल आएंगे वादे पर
मगर कल देखिए कब हो!
गलत फिर , हजरते-दिल
आपका तख्मीना होना है।
बस ए शमशेर, चल कर
अब कहीं उजलतगर्जी हो जा
कि हर शीशे को महफिल में
गदाए मीना होना है।