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जहाँ में अब तो जितने रोज़ / शमशेर बहादुर सिंह
Kavita Kosh से
जहां में अब तो जितने रोज अपना जीना होना है,
तुम्हारी चोटें होनी हैं, हमारा सीना होना है।
वो जल्वे लोटते फिरते हैं खाको-खूने-इन्सां में
तुम्हारा तूर पर जाना,मगर नाबीना होना है।
कदमरंजा है सूए-बाम एक शोखी कयामत की:
मेरे खूने-हिना-परवर से रंगो जीना होना है!
वो कल आएंगे वादे पर मगर कल देखिए कब हो!
गलत फिर, हजरते-दिल आपका तख्मीना होना है।
बस ए शमशेर, चल कर अब कहीं उजलतगर्जी हो जा
कि हर शीशे को महफिल में गदाए मीना होना है।