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दिल में यूँ बेदार होते हैं ख़यालाते-ग़ज़ल
आँख मलते जिस तरह उट्ठे कोई मस्ते-शबाबशबाब। गेसू-ए-ख़मदार में अशाआरे-तर की ठँढकेंआतशे-रुख़सार में कल्बे-तपाँ का इल्तहाब। चूड़ियाँ बजती हैं दिल में, मरहबा, बज़्मे-ख़यालखिलते जाते हैं निगाहों में जबीनों के गुलाब। काश पढ़ सकता किसी सूरत से तू आयाते-इश्क़अहले-दिल भी तो हैं ऐ शेख़े-ज़मा अहले-किताब।  एक आलम पर नहीं रहती है कैफ़ीयाते इश्क़गाह रेगिस्ताँ भी दरिया, गाह दरिया भी सुराब। कौन रख सकता है इसको साकिनो-जामिद कि ज़ीस्तइनक़लाबो - इनक़लाबो - इनक़लाबो - इनक़लाब । ढूँढिये क्यों इस्तेआरे और तशबीहो - मिसालहुस्न तो वो है बतायें जिसको हुस्ने - लाजवाब । हस्त जन्नत की बहारें चन्द पंखडि़यों में बन्दगुन्चा खिलता है तो फ़िरदौसों के खुल जाते हैं बाब। आ रहा है नाज़ से सिम्ते - चमन को ख़ुशख़िरामदोश पर वो गेसू-ए-शबगूँ के मँडलाते सहाब। हुस्न ख़ुद अपना नक़ीब, आँखों को देता है पयामआमद-आमद आफ़्ताब आमद दलीले-आफ़्ताब। अज़मते-तक़दीरे-आदम अहले-मज़हब से न पूँछजो मशीअत ने न देखे दिल ने देखे हैं वो ख़्वाब। हुस्न वो जो एक कर दे मानी-ए-फ़त्‍हो-शिकस्तरह गयी सौ बार झुक-झुक कर निगाहे कामयाब। ग़ैब की नज़रे बचा कर कुछ चुरा ले वक़्त सेफिर न हाथ आयेगा कुछ हर लम्हा है पा-दर-रिकाब हर नज़र जलवा है हर जलवा नज़र हैरान हूँआज किस बैतुलहरम में हो गया हूँ बारयाब। बारहा, हाँ बारहा मैने दमे-फ़िक्रे-सुखनछू लिया है उस सुकूँ को जो है जाने- इज़्तेराब। सर से पा तक हुस्न है साज़े-नुमू राज़े - नुमूआ रहा है एक कमसिन पर दबे पाँवों शबाब। बज़्मे - फ़ितरत सर-बसर होती है इक बज़्मे - समाअवो सुकूते - नीमशब का नग़्मा - ए- चंगो - रबाब। ऐ ’फ़िराक़’ उठती है हैरत की निगाहें बा अदबअपने दिल की खिलवतों से हो रहा हूँ बारयाब।
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