Changes

ग्रहण-दो / सुदर्शन वशिष्ठ

1,071 bytes added, 19:46, 31 अगस्त 2009
नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुदर्शन वशिष्ठ |संग्रह=अनकहा / सुदर्शन वशिष्ठ }} <...
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सुदर्शन वशिष्ठ
|संग्रह=अनकहा / सुदर्शन वशिष्ठ
}}
<poem>टी.वी. के भीतर बैठे
वृद्ध वैज्ञानिक यशपाल
उत्साहित हो चिल्लाएः
"ओ कोरेना! ओ डायमण्ड रिंग़!!"
लोग नाच उठे
पक्षी ठिकानों को जा रहे थे
लोग नाच रहे थे
अन्धेरा हो रहा था
लोग नाच रहे थे
उजाला हो रहा था
लोग नाच रहे थे।

जानते हैं लोग
यह खेल है सूरज का चाँद का
सभी जगह-जगह इकट्ठे हुए
ऐनकें खरीदीं
दफ़्तरों में छुट्टी हुई
नाचे,नहाए भी
आज भी
ग्रहण एक पर्व है। </poem>
Mover, Uploader
2,672
edits