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{{KKRachna
|रचनाकार=सुदर्शन वशिष्ठ
|संग्रह=अनकहा / सुदर्शन वशिष्ठ
}}
<poem>
है एक अजूबा
पहाड़ पर पेड़
विशाल ऊचा सीधा
समाधिस्थ योगी सा

जितना है जो ऊँचा
उतना ही शांत
जितना पुष्ट उतना अहिंसक

कभी लगता है पेड़ झबरीला भालू
कभी तिलिस्मी घाटी का एय्यार
कभी नाचता-गाता खाना बदोश
लगता है पेड़
कभी लगता है पेड़ पहरेदार
पहने रखता है वर्दी
हरी बेलों की
खड़ा रहता है झण्डे सा
टेढ़ी पहाड़ी पर
कभी लगता है विशाल डायनासोर
कभी लगता है पेड़
एक कविता
चाँद से बातें करता
हवा से हाथ मिलाता
सच एक अजूबा है
पहाड़ पर पेड़।
</poem>
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