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पहाड़ पर पेड़ / सुदर्शन वशिष्ठ
Kavita Kosh से
है एक अजूबा
पहाड़ पर पेड़
विशाल ऊचा सीधा
समाधिस्थ योगी सा
जितना है जो ऊँचा
उतना ही शांत
जितना पुष्ट उतना अहिंसक
कभी लगता है पेड़ झबरीला भालू
कभी तिलिस्मी घाटी का एय्यार
कभी नाचता-गाता खाना बदोश
लगता है पेड़
कभी लगता है पेड़ पहरेदार
पहने रखता है वर्दी
हरी बेलों की
खड़ा रहता है झण्डे सा
टेढ़ी पहाड़ी पर
कभी लगता है विशाल डायनासोर
कभी लगता है पेड़
एक कविता
चाँद से बातें करता
हवा से हाथ मिलाता
सच एक अजूबा है
पहाड़ पर पेड़।