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{{KKRachna
|रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरी
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तहों में दिल के जहां कोई वारदात हुई
हयाते-ताज़ा से लबरेज़ कायनात हुई

तुम्हीं ने बायसे-ग़म बारहा किया दरयाफ़्त
कहा तो रूठ गये यह भी कोई बात हुई

हयात राज़े-सुकूँ पा गयी अजल ठहरी
अजल में थोड़ी-सी लर्ज़िशे हुई हयात हुई

थी एक काविशे-बेनाम<sup>1</sup> दिल में फ़ितरत के
सिवा हुई तो वही आदमी की ज़ात हुई

बहुत दिनों में महब्ब़त को यह हुआ मालूम
जो तेरे हिज़्र में गुज़री वो रात रात हुई

फ़ि‍राक को कभी इतना ख़मोश देखा था
जरूर ऐ निगहे-नाज़ कोई बात हुई


1- अनाम जिज्ञासा

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