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तहों में दिल के जहां कोई वारदात हुई / फ़िराक़ गोरखपुरी

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तहों में दिल के जहां कोई वारदात हुई
हयाते-ताज़ा से लबरेज़ कायनात हुई

तुम्हीं ने बाएसे-ग़म<ref>ग़म का कारण</ref>बारहा किया दरयाफ़्त<ref>खोज, जाँच, टोह</ref>
कहा तो रूठ गये यह भी कोई बात हुई

हयात राज़े-सुकूँ पा गयी अजल<ref>मृत्यु, मौत</ref> ठहरी
अजल में थोड़ी-सी लर्ज़िश<ref>सिहरन, स्पंदन</ref> हुई हयात हुई

थी एक काविशे-बेनाम<ref>अनाम जिज्ञासा</ref> दिल में फ़ितरत के
सिवा हुई तो वही आदमी की ज़ात <ref>व्यक्तित्व, शख़्सियत, स्वयं,अस्तित्व</ref>हुई

बहुत दिनों में महब्ब़त को यह हुआ मालूम
जो तेरे हिज़्र में गुज़री वो रात रात हुई

'फ़ि‍राक़' को कभी इतना ख़मोश देखा था
ज़रूर ऐ निगहे-नाज़ कोई बात हुई

शब्दार्थ
<references/>