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07:50, 13 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=फ़िराक़ गोरखपुरी
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<poem>
इस सुकूते फ़िज़ा में खो जाएं
आसमानों के राज हो जाएं
हाल सबका जुदा-जुदा ही सही
किस पॅ हँस जाएं किस पॅ रो जाएं
राह में आने वाली नस्लों के
ख़ैर कांटे तो हम न बो जाएं
िज़न्दगी क्या है आज इसे ऐ दोस्त
सोच लें और उदास हो जाएं
रात आयी फ़िराक दोस्तो नहीं
किससे कहिए कि आओ सो जाएं
</poem>