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08:28, 16 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अवतार एनगिल
|संग्रह=मनखान आएगा / अवतार एनगिल
}}
<poem>
वह
जो बार-बार आता है
बतियाता है
बिना शब्दों के
वह
जो बार-बार
मथता है
हथेलियों और तलवों को
बीचों-बीच
डिवाइडर की नोक से
वह
जो बार-बार आता है
और धंसता चला जाता है
बीच माथे में
डायनामाईटी बर्मे-सा
मेरा प्रिय सखा है वह
बार-बार आता है जो
हार-हार जाता है जो
मैं उसे क्या कहूँ।</poem>