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08:41, 16 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अवतार एनगिल
|संग्रह=सूर्य से सूर्य तक / अवतार एनगिल
}}
<poem>
परछाईयों के जाल अप्र
थके कदमों की वापसी
रोज़ की बात है
कभी-कभी लगता है
अब कुछ नया नहीं
फिर भी
तारकोल बिछी सड़कों से हटकर
गाँव के कच्चे रास्तों पर
धड़कते हैं
भागते एक बच्चे के
दो किशोर पाँव !
</poem>