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10:22, 16 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=अवतार एनगिल
|संग्रह=सूर्य से सूर्य तक / अवतार एनगिल
}}
<poem>सुनो राजा विक्रमार्क !
रात के सन्नाटे में
ख़ामोशियों का शोर जब शुरू होता है
दनदनाती आती है एक गाड़ी
तब
किन्ही अनाम सड़कों को मथता
भागता,आता है एक किशोर
फिर भी
उसकी गुलाबी हथेलियों से
खिसक जाता है
रेल का वह अंतिम डिब्बा
जिसके दरवाज़े का
काला खालीपन
अम्बर--की--आंख---सा--झाकता है
हे राजा !
इस किशोर के साथ
अक्सर अंधेरे सपनों में
यही सब घटता है
जागता है तो देखता है
ख़ूबसूरत सपने
सोता है तो देखता है
बदसूरत सच्चाईयां
----एक सपने पर आधारित
</poem>