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131-140 मुक्तक / प्राण शर्मा
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19:10, 18 सितम्बर 2009
औ’ दर्द – दया उपजाती है
मदिरा हर प्राणी को अक्सर
संवेदनशील बनाती है।
१४०
ये भोली-भाली है हाला
कैसी मतवाली है हाला
चखने में कड़वी है लेकिन
पर चीज़ निराली है हाला
</poem>
प्रकाश बादल
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