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20:51, 18 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=रंजना भाटिया
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<poem>इक सन्नटा सा कमरे में फैला था
माँ के वाजूद से यह घर हरा भरा था
उसकी की हुई दुआओ से यह घर अभी भी महक रहा था
अभी भी जैसे उसकी मुस्कान का घर पर पहरा था
अभी भी उसके ख़ामोश होंठो पर सबके लिए दुआएं थी
बच्चो को दुख सेहने की शक्ति ...
पति के लिए हर बाला से टकराने की तमन्नाएँ थी
हर आरज़ू जैसे बंद आँखो से अभी भी पुकार रही थी
तुम सब हँसते खेलते स्वस्थ रहो ..
यह दुआ वोह बंद दिल की धड़कनो से भी माँग रही थी
जीते जी उसके कभी हम ना समझ पाए उसकी प्यार की आवाज़ को
आज मर के भी वोह सबको अपने में समेटे दुलार रही थी!! </poem>