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मां के जाने के बाद / रंजना भाटिया
Kavita Kosh से
इक सन्नटा सा कमरे में फैला था
माँ के वाजूद से यह घर हरा भरा था
उसकी की हुई दुआओ से यह घर अभी भी महक रहा था
अभी भी जैसे उसकी मुस्कान का घर पर पहरा था
अभी भी उसके ख़ामोश होंठो पर सबके लिए दुआएं थी
बच्चो को दुख सेहने की शक्ति ...
पति के लिए हर बाला से टकराने की तमन्नाएँ थी
हर आरज़ू जैसे बंद आँखो से अभी भी पुकार रही थी
तुम सब हँसते खेलते स्वस्थ रहो ..
यह दुआ वोह बंद दिल की धड़कनो से भी माँग रही थी
जीते जी उसके कभी हम ना समझ पाए उसकी प्यार की आवाज़ को
आज मर के भी वोह सबको अपने में समेटे दुलार रही थी!!