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{{KKRachna
|रचनाकार=गौतम राजरिशी
|संग्रह=
}}
<poem>बहर बाँध ले काफ़िया रख
गज़ल में सारा वाकिया रख

बढ़े शान ना दोस्तों से
कि दुश्मन तो कुछ शर्तिया रख

उठे हैं असुर फिर यहाँ अब
विभीषण-सा इक भेदिया रख

लिखा और जाना है कुछ तो
जरा साफ ये हाशिया रख

नहीं मेल है साज-सुर में
तु फिर बोल ही कुछ बढ्‍ढ़िया रख

जिरह,झिड़कियाँ,लाड़,सीखें
बुजुर्गों ने जो भी दिया,रख</poem>
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