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06:14, 19 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=गौतम राजरिशी
|संग्रह=
}}
<poem>बहर बाँध ले काफ़िया रख
गज़ल में सारा वाकिया रख
बढ़े शान ना दोस्तों से
कि दुश्मन तो कुछ शर्तिया रख
उठे हैं असुर फिर यहाँ अब
विभीषण-सा इक भेदिया रख
लिखा और जाना है कुछ तो
जरा साफ ये हाशिया रख
नहीं मेल है साज-सुर में
तु फिर बोल ही कुछ बढ्ढ़िया रख
जिरह,झिड़कियाँ,लाड़,सीखें
बुजुर्गों ने जो भी दिया,रख</poem>