भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
बहर में बांध ले काफिया रख / गौतम राजरिशी
Kavita Kosh से
बहर बाँध ले काफ़िया रख
गज़ल में हर इक वाकिया रख
बढ़े शान ना दोस्तों से
कि दुश्मन तो कुछ शर्तिया रख
उठे हैं असुर फिर यहाँ अब
विभीषण-सा इक भेदिया रख
लिखा और जाना है कुछ तो
जरा साफ ये हाशिया रख
नहीं मेल है साज-सुर में
जरा बोल ही बढ्ढ़िया रख
जिरह,झिड़कियाँ,लाड़,सीखें
बुजुर्गों ने जो भी दिया,रख