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17:24, 23 सितम्बर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=आरज़ू लखनवी
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<poem>
रहते न तुम अलग-थलग हम न गुज़रते आप से।
चुपके से कहनेवाली बात कहनी पड़ी पुकार के॥
पूछी थी छेड़कर जो बात, कहने न दी वो बात भी।
तुमने खटकती फ़ाँस को छोड़ दिया उभार के॥
</poem>