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<poem>बहर बाँध ले काफ़िया रख
गज़ल में सारा हर इक वाकिया रख
बढ़े शान ना दोस्तों से
नहीं मेल है साज-सुर में
तु फिर जरा बोल ही कुछ बढ्‍ढ़िया रख
जिरह,झिड़कियाँ,लाड़,सीखें
बुजुर्गों ने जो भी दिया,रख</poem>
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