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बहर में बांध ले काफिया रख / गौतम राजरिशी
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16:25, 8 अक्टूबर 2009
}}
<poem>बहर बाँध ले काफ़िया रख
गज़ल में
सारा
हर इक
वाकिया रख
बढ़े शान ना दोस्तों से
नहीं मेल है साज-सुर में
तु फिर
जरा
बोल ही
कुछ
बढ्ढ़िया रख
जिरह,झिड़कियाँ,लाड़,सीखें
बुजुर्गों ने जो भी दिया,रख</poem>
Gautam rajrishi
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