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चाय / रवीन्द्र स्वप्निल प्रजापति
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10:14, 12 अक्टूबर 2009
बहुत देर तक चाय
जिन्दगी
ज़िन्दगी
की उपेक्षा में ठंडी होती रही
फिर तुमने उंगली से चाय पर जमी परत हटा दी
मैंने कप को उठा कर ओंठों से लगा लिया
</poem>
अनिल जनविजय
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