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{{KKRachna
|रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र
}}<poem>काल परे कोस चलि चलि थक गए पाय,
सुख के कसाले परे ताले परे नस के।
रोय रोय नैनन में हाले परे जाले परे,
मदन के पाले परे प्रान पर-बस के।
'हरिचंद' अंगहू हवाले परे रोगन के,
सोगन के भाले परे तन बल खसके।
पगन छाले परे लांघिबे को नाले परे,
तऊ लाल लाले परे रावरे दरस के।</poem>
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