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02:59, 30 अक्टूबर 2009 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=सियाराम शरण गुप्त
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}<poem>प्रियतम कब आवेंगे,--कब?
कुछ भी देर हुई तो मेरे
सुमन सूख जावेंगे सब।
सखि, तब ये तूने किस बल पर
चुन रक्खे प्रसून अंचल भर,
नहीं ठहर सकते जो पल भर?
शीघ्र सूख जाने वाले थे
सुमन सूख जावेंगे जब,
प्रियतम तब आवेंगे,--तब!
प्रियतम कब आवेंगे,--कब?
कुछ भी देर हुई तो मेरे
दीनक सो जावेंगे सब!
सखि, सब सजग स्नेह से खाली,
दीपावलि किसलिए उजाली,
रहे न क्षण भर जिसकी लाली?
सत्वर सो जाने वाले थे
दीपक सो जावेंगे जब,
प्रियतम तब आवेंगे,--तब! </poem>